घटना चक्र मई 2020 सार संग्रह

 घटना चक्र मई 2020 सार संग्रह 

नमस्कार दोस्तों 


इस वीडियो में आपके लिए प्रतियोगिता दर्पण एवं घटना चक्र के माह मई 2020  का सार संग्रह लेकर आये हैं इस वीडियो में मार्च 2020   सारा करंट अफेयर्स क्लियर हो जायेगा इस वीडियो में हमने निम् परिदृश्य लाये है। 
  1.  अतर्राष्ट्रीय परिदृश्य 
  2. राष्ट्रीय परिदृश्य 
  3. कोविद-19 
  4. खेल परिदृश्य 
  5. आर्थिक परिदृश्य 
  6. पुरस्कार एवं सम्मान 
  7. विविध 
अगर आपने अभी तक वो वीडियो नहीं देखा है तो नीचे दिए गए लिंक से वीडियो को देख सकते है. 
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 भाटी शासक एवं शक्ति उपासना 

एक दिन सभी बहने जकड़ा नदी के छिछले जल में बालसुलभ करियों द्वारा खेल रही थी।  उन्होंने नदी में नहाने का मानस बनाया सभी ने अपने वस्त्रों को झाड़ी के पीछे रख दिया तथा जल क्रीड़ाओं के साथ नहाने में व्यस्त हो गयी उसे समय संयोगवश नानन ग्रह के सुल्तान अदन सुमरा का सेवक लुचिया रास्ते में भटकता हुआ वह से निकल रहा था उसने जब सभी बहनो दे अध्भुत सौंदर्य एवं लावण्य रूप को देखा तो वह अस्श्चर्या चकित हुआ।  उसने चुपके से झाडी की ओट में रखे वस्त्रों को उठाया और अपने साथ ले गलाया तथा नुराण सुमरा को इस घटना को बढ़ा चढ़ा के बताया की अमुख निर्जन स्थान पर देखि सभी सुन्दरिया रूपवती है , आपको विश्वास न हो तो आप स्वयं मेरे साथ उस स्थान  की और चलें।  इधर जब सभी बहने जल क्रीड़ा एवं स्नान से निवृत होकर बहार निकली तो अपने वस्त्र झाडी में न पाकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ , उन्होंने अपनी दिव्या शक्ति से नागिन की देह धारण की और रेंगती हुई अपने वास स्थान में झोपड़ियों में पहुँच गयी।  
        कुछ समय बाद सेहजदा नुरान अपने सेवक लुचिये को लेकर जब नदी तट पर पहुंचा तो वह किसी को न पाकर उस स्थान के आसपास के खोज करने लगे।  उत्सुकता वश जब उन्होंने रेट इज बने सर्पो दे रेंगने के चिह्न देखे तो उन चिह्नों का पीछा करते करते हुए मामड़िया जी के परिवार के वास में बानी झोपड़ियों तक पहुँच गए।  सेहजदा नुरान एवं उनके सेवक लुचिये उस जब झोपड़ियों में देखा तो हतप्रभ रह गए क्योंकि सतहों बहने अपने आप को नागिन रूप से सिंहनियो में बदल लिया था।  इनके इसी स्वरुप को नागणेची, सिंहानिया जी तथा सहणो नाम से भी लोक जगत में सम्बोधित किया  जाता है।  सेहजदा नुराण का अभी भी उनके रूप को लेकर मोह भांग नहो हो पाया था।  उसके सेवक लुचिये द्वारा सात बहनो दे सौंदर्य वर्णन से वह उप पर मोहित हो गया था उसने अपने विवाह का प्रस्ताव मामड़िया  जी के पास भिजवाया था लेकिंग उन्होंने उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।  इसमें नुराण  का पिता अदन सुमरा अत्यधिक क्रोधित हुआ , क्योंकि उसके पुत्र को अभिलाषा पूर्ण नहीं हो प् रही थी।  अदन सुमरा ने मंडिया जी को सात दिन का समय और दिया ताहि प्रस्ताव् को स्वीकार कर सके और उसने हाकड़ा नदी पार करने वाली नदियों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया था।  ताकि वह कही भाग के न जा सके।  

मामड़िया  जी कैसे निकले 

मामड़िया जी ने अपने विश्वस्त शेरव भाटी को सुल्तान अदन सुमरा केक पास विनयपूर्वक प्राथना करने तथा जिद को छोड़ने के लिए प्रताव भेजा , लेकिन अदन सुमरा नहीं माना। तब मामड़िया जी ने अपने परिवार सहित वास स्थान को छोड़ने के लिए नदी प्रकार जाने का निश्चय किया  . जब इनका कारवां हाकड़ा नदी दे तट पर पहुंचा तो उसमे अथाह जल हिलोरे ले रहा था।  उनको बिना नवो के पार करना मुस्किल था आवड़ जी ने जब अपने पिताश्री एवं कारवां के अन्य लोगो को संकट में देखा तो नदी को मार्ग देने के लिए प्रार्थना की लेकिन नदी मार्ग देने के बजाय पहले से भी तेज उफान पर हिलोरे मरने लगी तभी आवड जी ने उत्तेजित होकर शेरव भाटी को आदेश दिया की वह अपने झुण्ड के सबसे मांसल भेषे महिष की तलवार से बलि चढ़ाये, शेरव भाटी ने जैसे ही बलि चढाई आवड जी ने उसका रक्तपान करके जोर से आव्हान किया और सात चुल्लुओं में नदी के पानी को पीकर रेगिस्तान में बदल दिया।  आवड जी द्वारा हाकड़ा नदी को सात चुल्लुओं में पानी पीने से विशाल रहिस्तान में बदल  जाने का उल्लेख तवारीख जैसलमेर में भी है।   इस प्रकार आवड़ जी द्वारा हाकड़ा नदी सोखने के पश्चात् मामड़िया जी का परिवार एवं उनका करवा नदी पार करके सकुशल दूसरे स्थान पर पहुँच तो अदन सुमरा के सैनिक तट पर पहुंचे तो लेकिंग इस बार नदी ने पुनः अपने जलस्तर को बढाकर उनका मार्ग रोक दिया था।  नूरन सुमरा ब्रह्मवश सोचने लगा की अगर आवड जी माता वास्तविक रूप से देवी का रूप होते तो रात्रि में सिंध छोड़कर नहीं जाते।  उनसे और उनके सेनिको ने आवड जी का पीछा करना शुरू कर दिया तब आवड जी व् उनकी बहनो ने मिलकर सिंहनियों का रूप धारण कर लिया जिससे वे सिंहनिओ देवी देवी के रूप में पूजी जाती है।  नूरन की सेना ने आवड जी का पीछा करना जारी रखा तब आवड जी ने उनको भस्म होने का शाप दे दिया जिसमे नूरन सुमरा व् उसके सैनिक भस्म हो गए।  उस स्थान का नाम वतर्मान में बलाना नाम से जाना जाता है।  

नूरन सुमरा व् उसकी सेना का अंत

सिद्ध प्रदेश में हकरा नदी पार करने के पश्चात जिस गाओं के लोगो ने पहली बार इन देवियो का दर्शन किया।  उस गाओं का नाम "आइता" रखा गया।  इसके उपरांत "आइता" गाओं से सात  किलोमीटर दूर "कालेडूंगर " को अपना निवास स्थान बनाया यहाँ पर आवड़ जी काळा डूंगर रॉय नाम से प्रसिद्ध हुई।  आवड़ जी के चमत्कारों की कीर्ति संपूर्ण मांड प्रदेश में फ़ैल चुकी थी।  सभी लोग इनके  दर्शन करने के लिए दूर दूर से आने लगे थे।  लोद्रवा दस परमार शाशक जसभाँ काला डूंगर आये उन्होंने बिना भक्तिभाव आष्टा के आवड़ जी दे दर्शन करने की सोची लेकिन आवड़ जी उन्हें बिना दरशर दिए भोजासर तालाब प्रस्थान कर गए थे  . राजा जसभांन ने अपनी भूल के साथ क्षमा याचना की तथा भोजासर में आवड जी का राजसिक पूजा पाठ किया।  इस भोजासर प्रवास ढ स्मृति में उन्हें भोजसरी नाम से भी पूजा जाने लगा

भोजसरी नाम से नहीं पूजा जाने लगा 

आवड जी के दिव्या चमत्कारों की प्रशिधि लोद्रवा से होती हुई, जब राव तनु के पास पहुंची तो उन्होंने अपनी रानी सरंगदे सोलंकिनी, जो आवड़ जी माता की अनन्य भक्त थी के साथ रथ में बैठकर दर्शन के लिए तनोट से चल पड़े।  राव तनु ने अपने भ्राता बहादुरिया  जी की सेवा में  हेतु पहले घ भेज दिया था।  आवड जी माता के मांड प्रदेश में विचरण करते समय उनके भाई महरखे जी को पीवणा सांप ने दस लिया था सूर्योदय से पूर्व उपचार नहीं होने से उसकी मृत्यु हो सकती थी।  आवड जी ने अपनी शक्ति से सूर्यदेव को प्रार्थना कर बहन लंगड़े द्वारा पाताल लोक से अमृत लाने तक रोके रखा तथा अपने भाई को अमृत पिलाकर जीवनदान दिया. 

श्री देगराय नाम से पूजा जाने लगा 

भाई मेहरखे जी को पुनर्जीवित करने दे बाद आवड़ जी अपनी बहनो सहित जैसलमेर में देवीकोट गाओं के पास पहुंची यहाँ पर इन्होने राव तनु जी के भाई बहादुरिया जो को दर्शन दिए।  उसी सामान दानवरूपी एक देगडिया नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था।  आवड जी माता ने बहादुरिया जी को उस राक्षस का वध करने के लिए आदेश दिया तब उन्होंने अपनी चक्रली नाम की तलवार से उस राक्षस का वध किया।  ऐसे मान्यता है की दैत्य के सिर को देग को बनाकर उसमे रक्त उबाल कर सतो देवियो ने अपनी ओढ़निया रंगी थी।  उसी स्थान का नाम देग  पड़ा तथा देवी जी श्रीदेगराय नाम से पूजी जाने लगी।  उधर तनोट से आवड जी के दर्शन हेतु रथ से रवाना  हुए राव तनु जी एवं उनकी महारानी सोलंकिनी लम्बी कष्टमय यात्रा एवं थकन से चूर हो।   उन्होंने अपना रथ देवी माता जी के प्रवास स्थल से कुछ दूर पहले ही बोर नमक टीले पर विश्राम करने के लिए रोक दिया था।  कई दिनों की यात्रा से व्यथित महारानी सोलंकिनी ने आगे के शेष यात्रा पूरी करने में असमर्थता व्यक्त की।  उन्होंने ागगढ श्रद्धा के साथ बोर दस टेले पर जाल के वृक्ष के एक सुखी शाखा रोपित कर सच्चे मन से प्रार्थना की तथा उनसे मनौती मांगी की देवी जी स्वयं बोर के टीले पर प्रकट होकर उन्हें करपारथ करें।  

       






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