अप्रेल 2020 सार संग्रह अप्रेल वन लाइनर

 प्रतियोगिता दर्पण अप्रेल 2020 सार संग्रह 

प्रतियोगिता दर्पण अप्रेल 2020 सार संग्रह

नमस्कार दोस्तों 
इस प्रतियोगिता दर्पण के अप्रेल 2020 संस्करण का सार संग्रह का वीडियो लेकर आये है. इससे पूर्व के हमारे वीडियो देखने के लिए इस वेबसाइट की पोस्ट पर जाकर सभी वीडियोस को देख सकते है. इसके आलावा जनवरी से लेकर अप्रेल 2020 के सभी वीडियोस को देखने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल Knowledge zoom पर जाकर सभी वीडियो को देख सकते है. 
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 अप्रेल 2020 के सार संग्रह के महत्वपूर्ण बिंदु 

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा
  • पुर्तगाल के राष्ट्रपति की भारत यात्रा 
  • बौद्धिक   सम्पदा सूचकांक 2020 
  • कोरोना वायरस 
  • श्रीलंका के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा 
  • राम मंदिर निर्माण हत्य ट्रस्ट का गठन 
  • वर्ल्डवाइड एडुकेटिंग फॉर द फ्यूचर इंडेक्स 2020 
  • ऑस्कर अवार्ड्स 2020 
  • फ़िल्म्फरे अवार्ड्स 2020

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प्रतियोगिता दर्पण अप्रेल 2020 सार संग्रह

जैसलमेर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

जैसलमेर नाम के ज्कजय की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल में महारावल जैसल द्वारा 1156 में की गहि थी।  जैसलमेर दो शब्दों जैसल और मेरु से मिल दजकर बना है।  जैसलमेर शब्द इस रियासत की स्थापना करने वाले जयशाल को तथा मेरु शब्द राव जयशाल द्वारा बनाये गए दुर्गा को दर्शाता है प्राचीन काल में मांड धरा, वल्ल मंडल के नाम से प्रशिद्ध जैसलमेर नगर को अनेक उतर चढाव के पश्चात् अन्त में 1949 में स्वतन्त्र भारत में विलय कर दिया हाय।  ऐसे भी मान्यता है की महानहरात युद्ध के पश्चात् कालांतर में यादवों का मथुरा से बड़ी संख्या में बहिर्गमन हुआ, जैसलमेर के भूपुरवा शासको के पूर्वज जो अपने वंश को भगवन कृष्णा के वंशनुक्रम में मानते थे वे 6 ठी शताब्दी में जैसलमर की धरती पर आकर बस गए थे।  इसके बारे में यह किवदंती प्रचलित थी की द्वापर युग में भगवन कृष्णा और अर्जुन एक बार किसी कारन से यहाँ आये थे, अर्जुन को प्यास लगने पर उन्होंने सुदर्शन चक्र से एक कुआ खोदा तथा भविष्यवाणी की फड़ कभी जैसल नाम का यदुवंशी राजा यहाँ दुर्ग बनाकर अपनी राजधानी स्थपित करेगा।  
मेहता अजीत अपने भाटी नाम में लिखते है की त्रिकूट पहाड़ी पर एक शिला थी जिस पर यह भविष्यवाणी लिखी हुई थी।  
"जैसलनाम भूपति यदुवंशी एक थाय कोई काल रे अन्तरे एथ रहस्य आय" 
 महारावल जैसल यह देखकर अत्यंत प्रसन हुए तथा इस स्थान को शुभ मानकर यहाँ दुर्ग का निर्माण  करवाकर अपनी राजधानी स्थापित की।  इसी प्रकार अनेक इतिहासकारों के मतानुसार रावल जैसल द्वारा संवत  1212 में आचार्य ईसाल के कहने पर जैसलमेर की नींव का पत्थर रखा गया तथा स्वय के  दुर्ग एवं बगैर का नामकरण जैसलमेर किया गया।  इस  जैसलमेर की ख्यात में इस प्रकार उल्लेख किया गया है।  तवारीख जैसलमेर के लेखक लख्मीचंद ने श्री मद्भागवत गीता का साक्षा देते हुए आदिनारायण से वंशावली बताई है, जिसके अनुसार आदिनारायण के 11 वे वंशज का नाम यदु था, और उसी से यदुवंश चला।  
              कर्नल टॉड के अनुसार यदुवंश के उपरांत उनके  वंशज हिंदूकश के उत्तर तथा सिंधु नदी के दक्षिण भाग एवं पंजाब में बस गए, इस कारन यह प्रदेश यदु की डांग कहलाता था।  मथुरा से पलायन करने पर यदुवंशी शाशको ने विभिन्न स्थानों पर निवास किया तथा अंत में तदुवंशी मांड प्रदेश में आ गए थे।   डये लोग यदु की डांग से जुबलिस्तान, गजमि, सम्भलपुर होते हुए सिंध के रहिस्तान से होते हुए आये और यहाँ से लोग  जामड़ा और मोहिलों को निकलकर क्रमश तनोट लोद्रवा तथा जैसलमेर की और बढे। इतिहास में शक्ति पूजन  ही शक्ति की पूजा के रूप में सर्वप्रथम सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त होती पत्रदेवी की उपासना व नार की देविया रूप में प्रतिष्ठा के प्रचलन के साथ साथ मोहरों पर विपुल मात्रा में प्राप्त नाती चित्रों के अंकन से शक्ति की पूजा का आरम्भ माना जाता है।  
  



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सभ्यता के  साक्ष्य

सभ्यता के साथ  ही आर्यों के आगमन और उनके द्वारा पूज्य अदिति ईला , सरस्वती, पुरमाधि आदि के रूप में शक्ति देवी के प्रचलन का  उल्लेख मिलता हिअ जो भारतीय इतिहास में आज तक धार्मिक  प्रतिष्ठित है।  सूत्र काल के साथ ही एक बार पुनः भारतीय  इतिहास में शक्ति पूजा प्रतिष्ठित होती हुई दिखाई देती है।  शक्ति पूजा क एक संप्रदाय के रूप में उदय और अर्धनारीश्वर शिव की कल्पना का उदय सर्वप्रथम गुप्तकाल में परिलक्षित होता है।  मुप्त काल में जहाँ राजस्थान के दौसा जिले के बांदीकुई के निकट  आभानेरी नामक स्थान से प्राप्त हर्षत माता के रूप में देविया शक्ति की पूजा सबसे प्राचीन मानी जाती है।  इसके साथ साथ सीकर में स्थित हर्ष माता का मंदिर देवी पारवती, दुर्गा आदि नामो से विख्यात शक्ति पूजा गुप्त काल की ही दें है।  इसलिए गुप्त काल को  शक्ति पूजा के रूप में जाना जाता है। पुरातात्विक साक्ष्यों में सबसे महत्वपूर्ण उदयगिरि की गुफा में महिषासुर की वध करती हुई दुर्गा की एक सूंदर मूर्ति प्राप्त हुई थी. गुप्तकाल में शक्ति पूजा का मलेख पुरातात्विक साक्ष्यों के वळवा महाकवि कालिदास के ग्रंथो में शिव  पारवती की युग्म पूजा के रूप में हुआ हुआ है।  संपूर्ण भारत के साथ साथ राजस्थान में शक्ति उपासना के रूप में मात्रा पूजा का प्रचलन शताब्दी के प्रारम्भ हो गया था।  जिसका उल्लेख मटर वैदिक साहित्य, हरिवंशपुराण, मारकंडे पुरा, में देवी माहात्म्य शक्ति संप्रदाय के विविध स्वरूपों का निरूपण मिलता है।  शक्ति उपासना शौर्य , क्रोध, और दया की भावना से जुडी हुई होने के कारन इसकी पूजा महिषासुरमर्दिनि , दुर्गा, पारवती, मात्रा देवी, योगेश्वरी , दधिमती, अरण्यवासिनी, वसुंधरा, अष्टमातृका, राधिका, लक्ष्मी, भगवती, नंदा सस्वती, अम्बिका, काव्ययनि, काली रूपों में की जाती थी।  

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

मध्य युगीन जीवन भय और युद्ध से अधिक जुड़ा हुआ था जिसके कारन युद्ध में भाग लेने वाले शक्ति को आराध्य देवी मानकरर युद्ध में बलि देते है। तथा जेमताजी शब्द का आव्हान करते थे।  शांति के समय देवियों की उपासना हेतु मंदिरो  की स्थपना की गई थी , जिनमे 12 वि शताब्दी का ओसिया का प्रसिद्ध सच्चिका माता मंदिर , गोगुन्दा का शीतला मंदिर एवं कलिका मंदिर आदि राजस्थान के नरेशों का शक्ति पूजा में  उदाहरण है।  राजस्थान के प्रमुख शक्ति केंद्र में जगत का अम्बिका मंदिर , पिप्लाद माता का मंदिर, नागौर का दधि  माता मंदिर, बांसवाड़ा का त्रिपुरी सुंदरी माता मंदिर, आमेर की शिला देवी मंदिर प्रमुख रूप से देवीय शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है।  
                    थार मरुस्थल में अवस्तिथत जैसलमेर की मरुभूमि प्राचीनकाल से ही धर्म एवं दर्शन का देन्द्र रही है।  इस क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं एवं विदेशी आक्रमणकारियों ने गमेशा संकर पहुंचाया लेकिन फिर भी यहाँ के लोगो में धार्मिक  आस्था एवं विश्वास की अटूट परंपरा रही है।  इस मरुप्रदेश में अनेक सम्प्रदायों, धर्मो के लोग रहते थे।  जिनका धार्मिक जीवन सरल, उदार , एवं सद्भावना युक्त था।  हिन्दू धर्म के लोग शिव।  विष्णु. गणेश तथा सूर्य की पूजा करते थे।  श्री गणेश गृह प्रवेश के देवता ज्ञान के देवी सरस्वती, लक्ष्मी की समृद्धि एवं  क्रिया की देवी महाकाली एवं दुर्गा को दुर्भाग्य से बचने वाली देवी के रूप में जाना जाता है।  इसे मान्यता प्रचलित है की जब जब धर्म  और  संस्कृति का ह्रास होने लगता है पृथ्वी पर पाप बढ़ जाते हिअ तब पृथ्वी पर देवी स्त्री रूप में अवतरित होती है।  देविया अपनी अलौकिक कार्यों एवं दिव्या शक्तियों से हमारे सम्मुख रहकर जलकल्याण करती है।  इस प्रकार के चमत्कारिक कार्यो से लोगो में इनके प्रति अगाध श्रद्धा एवं विश्वास की भावना  को प्रबल मिलता है।  
               देवी शब्द का अर्थ विश्वव्यापी आदिशक्ति  जाता है इसके आलावा शक्ति रूप में इनका पूजन किया जाता रहा है।  देवियों उस विणा किसी भेदभाव ईवा छुआछूत से अपने सरल , शांत चरित्र से मनाओ जाती का कल्याण किया है।  इसी शक्ति पूजन के रूप में जैसलमेर की मरुधरा में आवड माता जी का अवतरित रूप तनोट माता की आध्यात्मिक यात्रा शक्ति रूप का अद्वितीय उदाहरण है।  
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दोस्तों वीडियो और  किसी लगी कमेंट करके जरूर बताये मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा... 
धन्यवाद 

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